Lohagad Fort Information And History In Hindi
Lohagad Fort Information
लोहागढ किला भारत में महाराष्ट्र राज्य के कई पहाड़ी किलो में से एक है।लोहागढ़ किला जिसका शाब्दिक अर्थ लोहे का किला ऎक ऐतिहासिक गढ है। जो 3400 फीट की ऊंचाई पर एक पहाड़ी के ऊपर स्थित है।लोनावाला के सह्याद्रि रेंज मे स्थित, यह इंद्रायणी बेसिन को पावन बेसिने से अलग करता है।लोहागढ किल भारत के हिल स्टेशन लोनावाला के करीब पुणे के उत्तर पश्चिम में 52 किमी की दूरी पर स्थित है। लोहागढ़ समुद्र तल से 1333 मीटर की ऊंचाई तक जाता है।यह किला एक छोटी सी सीमा से पड़ोसी विसापुर किले से जुड़ा हुआ है। लोहागढ़ और विसापुर किल्ला पुणे से 52 किमी दूर मालवली के पास एक प्रभावशाली पहाड़ के ऊपर स्थित है। इन किलो का निर्माण 18विं सदि मे हुआ था। दोनो किला को ऎक किमि लंबि चोटि अलग करति है।
लोहागढ़ कि उंचाइ लगभग समुद्र तल से 3400 है। यह किल बहुत विस्तृत विस्तार मे फ़ेला हुआ है। पास के गांव से लोहागढ़ जाने के लिए 4 दरवाजे है। महा दरवाजे पर कुछ मुर्तिया अभि भी आपको दिखाई देती है।इस किले के चार प्रवेश द्वारहै।जिस पर आप जैसे कि माहा दरवाजा, गणेश दरवाजा, हनुमान दरवाजा, और नारायण दरवाजा। महा दरवाजा पर कुछ मूर्तियां दिखाइ दे शक्ति है। और मूर्तिकार पुराने समय में प्रचलित कला और वास्तुकला की बात करता है।18विं शताब्दी के दौरान निर्मित ऎक सिढिदार कुआ और एक और बड़ा तालाब भि यहां पाया जाता है। जब आप किले मे हो तो प्रसिद्ध पावना बांध कि झलक देखना न भुले।विसापुर किल्ला 3500 फुट ऊंचा है। लोहागढ किला और बेडसे गुफ़ाओं के बीच स्थित है। 10 फीट लंबी एक विशाल तोप विसापुर का मुख्य आकर्षण है क्योंकि इसमें शाहि मुकुट की छाप है।
विंचू काटा लोहागढ़ का सबसे प्रसिद्ध स्थान है। जि की मकर राशि की तरह दिखने वाली पहाड़ियों की एक श्रृखंला है। पवना बांध को लोहागढ किला के पीछे से देखा जा सकता है। विसापुर किले से सिंहगढ किला , तुंग किला और तिकोना किल्ला साफ देखा जा सकता है।यह दो किल्ले ऐतिहासिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण है। और ट्रैक प्रेमियों और इतिहास प्रेमियों को यहां जरूर आना चाहिए।लोहागढ़ भारत में महाराष्ट्र राज्य के कईब पहाड़ी किलो मे से ऎक है। लोनावाला हिल स्टेशन और पुणे के उत्तर-पश्चिमी में 52 किमी के करीब लोहागढ़ समुद्र तल से 1033 मीटर की ऊंचाई पर है।किला ऎक छोटि सि सिमा से पडोसि विसापुर किले से जुडा हुआ है।लोहागढ और विसापुर किल्ला पुणे से 52 किमी दूर मालवली के पास एक प्रभावशाली पहाड़ के ऊपर स्थित है।
लोहागढ़ पुणे और मुंबई के ट्रेकर्स के लिए एक आदर्श ट्रैकिंग डेस्टिनेशन है। क्योकि इसकि सुगमता, ट्रेक मे आसानि और हरे भरे वातावरण के कारण।लोहागढ किला के सिर पर सभी तरह सीढ़ियां है। इसलिए छोटे बच्चे वाले की लोग यहां पर आसानी से शीर्ष पर चढ सकते हैं। और इसके ऊपर से पावना बांध देखा जा सकता है।
Lohagad Fort का इतिहास
लोहागढ़ सबसे मजबूत और सबसे प्रसिद्ध किलो में से एक माना जाता है। यह बहुत पुराने जमाने की बस्ती है।और कई राजा इस किल्ले पर कब्जा कर लिया और कई राजाओ ने इस पर अपना शासन किया। इसकी स्थिति वह सड़क को बोर पास तक ले जाने के लिए इसे हमेशा महत्वपूर्ण बना दिया होगा।
साल 1489:- इस किले का आधुनिक समय में इसका उल्लेख ऎक किले में से एक रूप में मिलता है। इसे मालिक अहमद ने तब अपने कब्जे में लिया था जब1489 में उसने खुद को एक स्वतंत्र शासक के रूप में स्थापित किया था।
साल 1564:- 1564 मे बुरहान निजाम शाह द्वितीय बाद में अहमदनगर के सातवे राजा को 1590-1994 तक अपने भाई के शासनकाल में यहिं कैद कर लिया गया।
साल 1637 में अहमदनगर राजवंश के पतन पर लोहागढ बिजापुर राजाओ के पास चला गया।
साल 1648-1670:- 2648 ई..मे शिवाजि महाराज ने इसको अपने अधिकार मे कर लिया। लेकिन पुरंदर कि संधि के द्वारा 1665 ई..मे उन्हे इस मुगलो को सोंपने के लिये मजबुर होना पडा। शिवाजी ने 1670 ई. मे इस किले पर चढ़ाई की और फिर से कब्जा कर लिया। तानाजी मालुसरे के सिंहगढ पर कब्जा करने के बाद सफल ऑपरेशन, लोहागढ़ को मराठों ने हैरान कर दिया था। और बाद में अपने खजाने को रखने के लिए इसका इस्तेमाल किया। इस किले का उपयोग सूरत से लूटी गई चीजों को रखने के लिए किया जाता था।
साल 1713 मे इसको अंगरिया ने लिया था।
साल 1720 मे यह बालाजि विश्वनाथ को दिया गया था।
साल 1770:- साल 1770 मे नाना फडणवीस के हित में किला जावजि बोंबले नामक एक कोली द्वारा लिया गया था। यह आदमी जो एक प्रसिद्ध डाकु था। उसके पास कुछ राजधानी रॉके-टमैन थे और उनमें से एक को एक अनुकूल स्थिति में ले जाकर उसे उस दिशा की ओर इशारा किया जिसमें उसे आग लगानी थी। एक रॉकेट पत्रिका के दरवाजे के पास कुछ पाउडर के बीच गिर गया और ऎसा विस्फ़ोट हुआ कि गैरसिन को आत्मसमर्पण करने के लिए मजबुर होना पडा।
साल 1796-1800:- धोंडोपत को जो अपने हि ऎक अश्रित थे।उसको लोहागढ कि कमान सोंपि।और अपना सारा खजाना उन्होने किले मे भेज दिया।और नाना कि मृत्यु 1802 मे हुई। और उनकि विधवा 12 नवंम्बर 1802 मे लोहागढ मे शरण लि। और धोंडोपत ने किला पेशवा को शोंपने से इन्कार कर दिया।जब तक कि नाना के अनुयायिओ को कुछ कार्यालय नहि मिले।
धोंडोपत 1803 तक कमान मे रहे जब पेशवा, जनरल वैलेस्लि कि मध्यता के तहत धोंडोपंत को एक वफादार विषय के रूप में कार्य करने के वादे पर किले को रखने की अनुमति देने पर सहमत हुए।कुछ समय बाद कृष्णा के पास एक किले से धोंडोपत के एक सैनिक ने पेशवा पर गोली चलाई और उसे एक मंदिर में जाने की अनुमति नहीं दी। ईश आक्रोश कि सजा में जनरल वैलेस्लि ने लोहागढ़ पर हमला करने की धमकी दी। और व्यक्तिगत सुरक्षा के वादे पर और नाना की विधवा को 1200 ₹के वार्षिक अनुदान के वादे पर, जिससे जनरल वैलेस्लि बहुत ही निष्पक्ष और बहुत सुंदर के रूप में वर्णित किया। एक संधि की वस्तु होने के योग्य धोंडोपंत थाने और विधवा के लिये सेवानिवृत हुऎ।पनवेल को चमकीले ने अंग्रेजों के सामने आत्मसमर्पण कर दिया तो उसके पास सभी प्रकार के गोला बारूद की भारी मात्रा थी।
साल 1803:- यह ऎक बार पेशवा को बाहर कर दिया गया था। और 1803 अक्टूबर में जब लोर्ड वैलेंटिया ने दोर किया था। तो इसे जोरदार ढंग से बंद कर दिया गया था। लेकिन दुकानों के साथ खराब आपूर्ति की गई थी।धोंडोपंत कि चौकी से 3000 आदमियों की परिस्थितियों के अनुसार अलग-अलग थी। पेशवा के साथ अंतिम युद्ध 4 मार्च 1818 के शुरू होने के कुछ महीने बाद ,कर्नल प्रोथर के नेतृत्व में एक मजबूत सेना लोहागढ़ के खिलाफ भेजी गई। विसापुर पर कब्जा करने पर गैरिसन ने लोहागढ़ छोड़ दिया और अगले दिन इसे बिना किसी प्रतिरोध के लिया गया।
साल 1845:- साल 1845 तक किले पर एक कमांडर और कुछ सैनिक तैनात थे गार्ड को बाद में हटा दिया गया था लेकिन शायद इसलिए कि किले को किसी भी समय विसापुर से कमान दी जा सकती थी 4 प्र वेशद्वार और अन्य किलेबंदी को छोड़ दिया गया था।
साल 1862:- साल 1862 यह एक मजबूत किले के रूप में रिपोर्ट किया गया था। पानी की पर्याप्त आपूर्ति के साथ दीवारों और फ़टकों में थोड़ी सी भी कमी थी। और लगभग 500 लोगों को रखने में सक्षम था। बाद में पेशवा के समय में नाना फ़डनविस ने कुछ समय के लिए रहने के लिए इस किले का इस्तेमाल किया। और इस किले में कई सरंचनाओं का निर्माण किया जैसे कि एक बड़ा टैंक और एक बावड़ी।और बाद में किले को सरकार द्वारा संरक्षित स्मारक घोषित किया गया है।
लोहागढ किला कि वास्तुकला
लोहागढ़ कि उंचाइ लगभग समुद्र तल से 3400 है। यह किल बहुत विस्तृत विस्तार मे फ़ेला हुआ है। पास के गांव से लोहागढ़ जाने के लिए 4 दरवाजे है। महा दरवाजे पर कुछ मुर्तिया अभि भी आपको दिखाई देती है।इस किले के चार प्रवेश द्वारहै।जिस पर आप जैसे कि माहा दरवाजा, गणेश दरवाजा, हनुमान दरवाजा, और नारायण दरवाजा। महा दरवाजा पर कुछ मूर्तियां दिखाइ दे शक्ति है। और मूर्तिकार पुराने समय में प्रचलित कला और वास्तुकला की बात करता है।18विं शताब्दी के दौरान निर्मित ऎक सिढिदार कुआ और एक और बड़ा तालाब भि यहां पाया जाता है।विंचू काटा लोहागढ़ का सबसे प्रसिद्ध स्थान है। जि की मकर राशि की तरह दिखने वाली पहाड़ियों की एक श्रृखंला है। पवना बांध को लोहागढ किला के पीछे से देखा जा सकता है। विसापुर किले से सिंहगढ किला , तुंग किला और तिकोना किल्ला साफ देखा जा सकता है। इसके अलावा भि लोहागढ किला मे कई आकर्षण के स्थान है।
लोहागढ किला मे घुमने वाले स्थल
लोहागढ किला पश्चिमी घाट का हिस्सा है। लोहागढ़ कि उंचाइ लगभग समुद्र तल से 3400 है।लोहागढ किला विसापुर किले के दक्षिण-पश्चिम मे स्थित है। रेंज इंद्रायणि नदि और पावना झिल के घाटियो को विभाजित करता है। लोहागढ किला पहाड के दक्षिण मे स्थित पावना झिल को देखता है। यह पहाडि उत्तर-पश्चिमि मे ऎक गढवाले स्पर तक फ़ैलि हुई है।जिसे इसके समान आकार के कारण विनचुटका( यानि कि बिच्छु कि पुंछ) कहा जाता है।लोहागढ किला के चार प्रवेश द्वारहै।जिस पर आप जैसे कि माहा दरवाजा, गणेश दरवाजा, हनुमान दरवाजा, और नारायण दरवाजा। महा दरवाजा पर कुछ मूर्तियां दिखाइ दे शक्ति है। और मूर्तिकार पुराने समय में प्रचलित कला और वास्तुकला की बात करता है।18विं शताब्दी के दौरान निर्मित ऎक सिढिदार कुआ और एक और बड़ा तालाब भि यहां पाया जाता है।लोहागढ किला के चार बडे दरवाजे अभि भि अच्छि स्थिति मै है और यथोचितरुप से बरकरार है।
लोहागढ किले का महत्व
इस किले का विशाल ऎतिहासिक महत्व और पुरातात्विक सुंदरता का निवास स्थान है।और अतित मे विभ्भिन शासकों द्वारा विभिन्न कार्यों के लिए इसका उपयोग किया गया है। पिछली शताब्दी का एक और महत्व यह है कि पुरंदर संधि के कारण छत्रपति शिवाजी को सौंपी गये कई किलो में यह किला भी शामिल था। हालांकि जब शासक किलो को फ़िर से हासिल करने के मिशन गये तो लोहागढ़ भि उनके गढ में आ गया।जो उनकी महत्वपूर्ण उपलब्धियों का हिस्सा बन गया है।
लोहागढ किले मे कौन सि लडाइया लडि गई?
छत्रपति शिवाजी मराठा साम्राज्य के संस्थापक थे। जो भारत के इतिहास में प्रसिद्ध है। कुछ लड़ाई लड़ी गई जिसके परिणाम स्वरूप किले को सौंप दिया गया या फिर से कब्जा कर लिया।तो आइये देखते है यहां कौन सि लड़ाई लड़ी गई है।
- मैसुर पठार कि लडाई
- सिंहगढ कि लडाई
- सुरत कि लडाई
- पुना का युद्ध
लोहागढ किला कैसे पहुंचे?
धिरे-धिरे लुढकति पहाड़ियों की गोद में बसे ट्रेकिंग के माध्यम से लोहागढ किलॆ तक पहुंचने के लिए ऎक से अधिक मार्ग है। लोहागढ़ किले पर यात्रा के विभिन्न तरीकों से पहुंचा जा सकता है। लोहागढ़ यात्रा के लिए आप फ़्लाइट, ट्रेन और बस में किसी भी का चुनाव कर सकते हैं।
- 1.फ़्लाइट से लोहागढ किला कैसे पहुंचे?:- दोस्तों अगर आपने लोहागढ किलॆ जाने के लिए फ़्लाइट का चुनाव किया है तो हम आपको बता दे कि हवाइ मार्ग से जाना बहुत आसान है। क्योंकि पुणे अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा लोहागढ़ किले का सबसे निकटतम हवाई अड्डा है।यहां से आप अन्य साधनों की मदद से लोहागढ़ किला कि यात्रा कर सकते हैं।
- 2.ट्रेन से लोहागढ किला कैसे पहुंचे?:- दोस्तों अगर आपने लोहागढ किलॆ जाने के लिए ट्रेन का चुनाव किया है तो हम आपको बता दे कि ट्रेन मार्ग से जाना बहुत आसान है। क्योंकि निकटतम रेलवे स्टेशन मालवलीहै। जहां लोनावाला और पुणे के बीच उपनगरीय ट्रेनों द्वारा पहुंचा जा सकता है। निकटतम प्रमुख रेलवे स्टेशन मुंबई-पुणे रेलवे लाइन पर लोनावाला है।लोहगढ मुंबई पुणे राजमार्ग से जुड़ा हुआ है। और सभि प्रकार के वाहनो के लिये कोलवन और दुधिवारे खिंड के माध्यम से पौड से भि पहुंचा जा सकता है।
- 3.बस से लोहागढ किला कैसे पहुंचे?:- दोस्तों अगर आपने लोहागढ किलॆ जाने के लिए बस यानि सडक मार्ग का चुनाव किया है तो हम आपको बता दे कि सडक मार्ग से जाना भि आसान है। दोस्तों आपकी जानकारी के लिए बता दु कि खंडाला हिल स्टेशन मुंबई एक्सप्रेसवे पर स्थित है। जोकि खोपोलि, कर्जत,तालेगांव और दाभाड़े प्रमुख शहरों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है।आप बस से लोहागढ कि यात्रा पर आसानि से जा सकते हैं।
दोस्तों अगर आप पर लोहागढ़ किले की यात्रा करना चाहते हैं। यात्रा का सबसे अच्छा समय मानसून के मौसम के दौरान होता है। जब बारिश से आसपास के वातावरण को ताजा और हराभरा बना देती है। और बारिश की वजह से किले के आसपास वातावरण तरोताजा और चमकीला हो जाता है।और मॉनसून के मौसम में काले बादलों का एक आवरण सूर्य से एक बड़ी राहत देता है। इस मौसम में किले की चोटी पर पानी के कुंड और तालाब भर जाते हैं। और आप चाहे तो उन्मे आप कुद भि सकते हैं। हालांकि अक्टूबर से मार्च के बीच का समय के लोहागढ़ के यात्रा के लिए अच्छा माना जाता है।
ध्यान देने वालि बाबत:- यदि आप लोहागढ़ किला मुनचुन के दौरान जाते हैं तो मानसून के मौसम में सड़क अच्छी स्थिति में नहीं होती है। और बेस विलेज पर गाड़ी चलाना थोड़ा असहज हो जाता है। और भारि बारिश के कारण उपर का रास्ता काफ़ि फ़िसलना भरा हो जाता है। लेकिन अगर आप सावधान रहें और अपना समय ले तो वास्तव में सुरक्षित है।
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